संस्कृत विभाग:
अतर्रा पी0जी0 कालेज अतर्रा,बाँदा (उत्तरप्रदेश) बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से सम्बन्ध है जिसका शिलान्यास श्रीमती इंदिरा गाँधी द्वारा सन 1959 में हुआ I इसका संस्थापन वर्ष 1960 है I महाविद्यालय का आप्त वाक्य ‘वसुधैव कुतुम्कम’ है, जो कश्मीरी पंडित विष्णु शर्मा के द्वारा रचित पंचतंत्र से लिया गया है I महाविद्यालय में कुल पांच संकाय हैं – कला संकाय, विज्ञान संकाय, शिक्षा संकाय, वाणिज्य संकाय एवं कृषि संकाय I
संस्कृत-विभाग कला संकाय का एक अतिविशिष्ट तथा प्राच्य भाषा विभाग है I संस्कृत-विभाग के स्नातक कक्षा की स्थापना महाविद्यालय की स्थापना के साथ ही सन 1960 में हो गई थी किन्तु परास्नातक की कक्षाओं का शुभारम्भ सन 1972 में हुआ I संस्कृत-विभाग के प्रथम विभागाध्यक्ष पंडित शिवअवतार मिश्र रहे I वर्तमान में संस्कृत-विभाग में कुछ 04 पद स्वीकृत हैं, जिनमे 02 प्राध्यापक स्थाई रूप से तथा 01 प्राध्यापक शिक्षा निदेशक (उच्च शिक्षा) के अनुमोदन से 01 प्राध्यापक अंशकालिक के रूप में कार्यरत हैं I विभाग में कार्यरत सभी प्राध्यापकों के राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर की मूल्यांकन शोध पत्रिकाओं में शताधिक शोध पत्र प्रकाशित है I इस विभाग में विगत 5 वर्षों से 15 विद्यार्थियों ने U.G.C द्वारा आयोजित नेट परीक्षा उत्तीर्ण की हैं I इस विभाग में अब तक लगभग 30 शोधार्थी P.H.D. की उपाधि प्राप्त कर चुके है I साथ ही सरकारी एवं गैरसरकारी विभागों में भी इस विभाग के विद्यार्थियो ने अपनी पहचान बनायी है I विभाग में प्रतिवर्ष लघुशोध संघोष्ठी, निबन्ध प्रतियोगिता, भाषण प्रतियोगिता एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है I वर्तमान में विभाग में 08 शोधार्थी शोध कार्य कर रहे है, जिनका कार्य संस्कृत वांग्मय के विविध विषयों को लेकर प्रगति पर है I विभाग के समस्त प्राध्यापक कुशल ज्ञान-विज्ञान के वेत्ता ही नही अपितु रचनाधर्मी भी है I विभाग में विविध आयामों को लेकर संस्कृत-वांग्मय में समुपलब्ध तथ्यों को ध्यान में रखते हुए अनवरत शोध निर्देशन चलता रहता है I

